Tuesday, March 3, 2009

सुखू और दुखू (आख़िरी भाग)



घर वापस आते समय, दुखू को रास्ते में घोड़ा मिला। घोड़े ने दुखू को देख कर खुश होते हुये उसका हाल पूछा उअर उसे उपहार में एक छोटा बच्चा घोड़ा दिया। दुखू खुशी से फूली न समाई। अब वो उस घोड़े पर बैठ कर अपने घर की ओर जाने लगी। आगे और चल कर उसे रास्ते में केले का पेड़ मिला। उस केले के पेड़ ने भी दुखू का हाल-चाल पूछा और उसे एक केले का बड़ा सा गुच्छा तोहफ़े में दिया। दुखू उसे भी साथ ले कर खुशी खुशी अपने घर की ओर चल पड़ी। आगे और जा कर उसे गाय मिली, जिसने उसे उपहार में एक बछड़ा दिया। दुखू ये सब ले कर अपने घर पहुँची। दुखू को देख कर उसकी मां बहुत खुश हुई। रात को जब दुखू ने अपना छोटा सा पिटारा खोला तो उसमें से एक राज कुमार निकला और उसने दुखू की मां से दुखू का हाथ माँगा। दुखू की माँ बहुत ख़ुश हुई और दुखू अब शादी के बाद बड़े से महल में रहने लगी।


दुखू और उसकी मां की तरक्की देख कर सुखू और उसकी मां जलभुन कर राख हो गये। एक दिन सुखू ने दुखू से मिल कर पूछ लिया कि आखिर ये सब हुआ कैसे। दुखू ने सुखू को सब सच सच बता दिया। तब एक दिन सुखू भी रूई ले कर बैठी और झूठ मूठ चरखा कातने लगी। तब हवा आकर उसकी भी रूई उड़ा कर ले गई। सुखू ने भी खूब हाय तौबा मचाई। तब हवा ने आकर सुखू को भी उसके साथ आने को कहा। सुखू हवा के पीछे हो ली।


आगे चल कर सुखू को वही गाय मिली। गाय फिर गंदगी में पड़ी थी। उसने सुखू से कहा कि वो उसके आसपास को ज़रा साफ़ कर दे। मगर सुखू ने तेज़ आवाज़ में कहा," मैं क्यों करूँ? मुझे अभी बहुत काम है, मैं हवा के साथ जा रही हूँ, चांद की मां से मिलने।" ऐसा कह कर सुखू हवा के साथ आगे निकल गई। इसी तरह उसे आगे रास्ते मॆं केले का पेड़ और घोड़ा भी मिले। मगर सुखू ने उनकी भी कोई मदद नहीं की।


हवा के साथ आगे चल कर उसे भी चांद की मां का महल दिखा। वो चिल्लाते हुये अंदर घुसी और कहा, " ए बुढ़िया, मुझे जल्दी से रूई दे दे, जो कि हवा उड़ा लाया है।" चांद की मां को बुरा लगा मगर उसने सुखू से कहा कि वो बांये के कमरे में जा कर कुछ खा ले और बाद में दाहिने कमरे में जा कर अपनी पसंद का एक पिटारा ले ले। सुखू ने ज़रूरत से ज़्यादा पेट भर कर खाया और अब दूसरे कमरे मॆं जा कर पिटारा लेने गई। उसे वहाँ कई छोटे बड़े पिटारे दिखे। उसने चुन कर एक सबसे भारी और बड़ा पिटारा लिया और उसे सर पर लाद कर, बूढ़ी चाँद की मां को कोई धन्यवाद किये बिना ही वहाँ से निकल गई।


घर वापस जाते वक्त रास्ते में सुखू को घोड़ा मिला। घोड़े ने उसे ज़ोर से दुलत्ती मारी और सुखू वहाँ से रोते रोते भागी। आगे और जाने पर उसे केले का पेड मिला। केले के पेड़ ने भी उसे सबक सिखाने के लिये अपने डाल से उस पर वार किया। बड़े से भारी बक्से के साथ सुखू किसी तरह हाँफ़ते हांफ़ते घर की भागी। आगे और जाने पर उसे रास्ते में गाय मिली। गाय ने भी उसे सींग से मारा। सुखू रोते रोते, गिरते पड़ते अपने घर पहुँची। सुखू की मां उसका बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। उसकी ये हालत देख कर वो परेशान हो गई और कहा, चलो अब ये बक्सा खोलो। बक्से के खोलते ही, उसमें से एक बड़ा सा साँप निकला और सुखू को निगल गया। सुखू की माँ वो गाँव छोड़ कर चली गई।


इसलिये हमें चाहिये कि हम सब का भला सोचें और सबका भला करें। अच्छे का फल अच्छा होता है और बुरे का बुरा।