tag:blogger.com,1999:blog-53679135067016138482024-03-05T00:02:13.993-08:00परी कथाबच्चों को समर्पित बाल कथाओं/बाल-कविताओं का ब्लाग (चित्र सौजन्य: http://fantasygalleryart.com)Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी http://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.comBlogger12125tag:blogger.com,1999:blog-5367913506701613848.post-45494034978896114332009-10-21T18:38:00.000-07:002009-10-21T19:54:22.021-07:00बिग आल- हूबहू नहीं पर कहानी वही<a onblur="try {parent.deselectBloggerImageGracefully();} catch(e) {}" href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgw0OuwZfxmouBPu94_fTEA__tbf5H4ehgnl8pNv0Qjbaw-ZqcgRPQvnuesrZ63RmMS00bKu6P8ri_8o1AJikvlW9JYX4yTBUrj827lrYpuRIGQwXAHVM9YYt11Hekha7zksN8kz-Ea3bdC/s1600-h/big+al.jpg"><img style="margin: 0px auto 10px; display: block; text-align: center; cursor: pointer; width: 155px; height: 127px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgw0OuwZfxmouBPu94_fTEA__tbf5H4ehgnl8pNv0Qjbaw-ZqcgRPQvnuesrZ63RmMS00bKu6P8ri_8o1AJikvlW9JYX4yTBUrj827lrYpuRIGQwXAHVM9YYt11Hekha7zksN8kz-Ea3bdC/s320/big+al.jpg" alt="" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5395241252128992594" border="0" /></a><br /><br /><object classid="clsid:d27cdb6e-ae6d-11cf-96b8-444553540000" codebase="http://fpdownload.macromedia.com/pub/shockwave/cabs/flash/swflash.cab#version=8,0,0,0" id="divplaylist" width="335" height="28"><param name="movie" value="http://www.divshare.com/flash/playlist?myId=8985578-538"><embed src="http://www.divshare.com/flash/playlist?myId=8985578-538" name="divplaylist" type="application/x-shockwave-flash" pluginspage="http://www.macromedia.com/go/getflashplayer" width="335" height="28"></embed></object><br /><br />आज ऐन्ड्रू क्लेमेंट्स योशी की कहानी "बिग आल" का हिन्दी रूपांतरण- हूबहू नहीं पर कहानी वही।<br /><br /><span style="font-size:130%;">पूरे नीले समंदर में</span><span style="font-weight: bold;font-size:130%;" > बिग आल</span><span style="font-size:130%;"> जैसी अच्छी मछली नहीं थी। मगर वो दिखने में बेहद भयानक थी। इतनी भयानक कि उस पूरे समंदर में उसका कोई दोस्त नहीं था । सारी छोटी-बड़ी मछलियाँ उससे दूर भागती थीं। बिग आल उन से दोस्ती करना चाहती थी, मगर उसका भयंकर रूप देख कर उसके पास कोई भी नहीं आता। बिग आल ने काफ़ी कोशिश की छोटी मछलियों से बात करने की, उनसे दोस्ती करने की। मगर हर बार बात बिगड़ जाती।<br /><br />एक बार बिग आल ने अपने को समुद्र की पत्तियों से ढाँप लिया। मगर उस बड़े से तैरते बेल-पती को देख कर छोटी मछलियाँ और भागीं। फिर एक बार बिग आल ने अपने को खूब फुला लिया कि शायद सब उसे देख कर हँसे और उससे दोस्ती कर लें, मगर, न, सभी मछलियाँ उससे डर कर और दूर भाग गईं। फिर एक बार बिग आल ने खु़द को समुद्र के नीचे रेत में दबा लिया और सभी मछलियों से हँसी-ठिठोली करने लगी। सभी मछलियाँ उसकी दोस्त बन गईं, मगर थोड़ी ही देर के लिये। एक रेत का कण बिग आल की नाक (गिल्स) में जा घुसा और वो </span><span style="font-weight: bold;font-size:130%;" >आं...आं...आंच्छी....</span><span style="font-size:130%;">कर के छींक पड़ी। बस उसका छींकना था कि बिग आल को ढकती सारी रेत पानी में इधर-उधर हो गई और बिग आल का असली रूप देख कर सभी मछलियाँ भाग गईं। एक बार बिग आल ने सभी मछलियों के साथ समुद्र में एक सा बन कर, रंग बदल कर तैरने की कोशिश की. मगर वो इतनी बड़ी थी कि उन छोटी मछलियों की गति के साथ तैर नहीं पाती और सब से टकरा जाती।<br /><br />अब कि बार जब बिग आल को पक्का हो ही चला था कि उसकी कोई दोस्त नहीं बन सकता कभी भी, और वो उस दिन बेहद उदास थी, तभी अचानक समुद्र में ऊपर से एक भारी सा कुछ आकर गिरा। वो एक जाल था जिसमें सारी छोटी मछलियाँ फँस गईं। बिग आल का ये देखना था कि उसने आव देखा न ताव, वो तेज़ गति से उस जाल से जा टकराई। जाल टूट गया और सभी छोटी मछलियाँ आज़ाद हो गईं। मगर...बिग आल इस जाल में फँस गई। और वो जाल ऊपर उठ गया समुद्र से।<br /><br />"ओह! वो भली मछली कौन थी, हमें उसने बचाया, हाय वो तो फँस गई..." सभी मछलियाँ आपस में बात करने लगीं कि </span><span style="font-weight: bold;font-size:130%;" >छप्पाक</span><span style="font-size:130%;">...ऊपर से फिर कुछ गिरा...ओह! फिर मछली का जाल तो नहीं? सभी मछलियाँ फिर एक बार डर गईं। नहीं, इस बार जाल नहीं बल्कि वो बिग आल थी। इतनी बदसूरत भयानक मछली को मछुआरों ने देख कर वापस समुद्र में फेंक दिया था।<br /><br />उस दिन के बाद से सारे समुद्र में सबसे ज़्यादा दोस्त थे बस एक ही मछली के - बिग आल के।<br /><span style="font-size:85%;"><br />(आशा है कि ऐसे किसी रूपांतरण से किसी कापीराइट का हनन नहीं होता होगा, और अगर ऐसा है तो ये अनजाने में हुआ होगा, और ब्लाग पर सूचित करने पर इस पोस्ट को हटा दिया जायेगा)</span><br /></span>Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी http://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-5367913506701613848.post-15764504665917015302009-04-12T17:43:00.000-07:002009-04-12T18:56:13.078-07:00बारह राजकुमारियाँ- अंतिम भाग<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhcF7fw03NB0c8g42Hfr2wvnZua8kpmo-GkI1Mo1vOcJUmr_RmEiMTReASyhfm68ajCri4hVD_mtCEhCJ3uis9VVtIvoJthLq3iJ2X-O_JtftvJRVYHVI_l6JOyjVX9itsslm8nd18brDk/s1600-h/The-Twelve-Dancing-Princess.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5323987758775613474" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 269px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhhcF7fw03NB0c8g42Hfr2wvnZua8kpmo-GkI1Mo1vOcJUmr_RmEiMTReASyhfm68ajCri4hVD_mtCEhCJ3uis9VVtIvoJthLq3iJ2X-O_JtftvJRVYHVI_l6JOyjVX9itsslm8nd18brDk/s320/The-Twelve-Dancing-Princess.jpg" border="0" /></a><br /><div><a href="http://pareekatha.blogspot.com/2009/04/blog-post.html"><span style="font-size:130%;">पहला भाग पढ़ने के लिये यहाँ क्लिक करें-</span></a></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">गतांक से आगे-</span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><div><span style="font-size:130%;">उस सैनिक को राजा ने कई बार चेतावनी दी और अपने कार्य में सफ़ल न होने पर अंजाम से अवगत कराया मगर सैनिक अपने निश्चय पर दृढ़ रहा। तब राजा ने उसे राजकुमारियों के कमरे से लगे एक कमरे में तीन दिन बिताने की व्यवस्था कर दी। इस कमरे का दरवाज़ा राजकुमारियों के कमरे के साथ खुला हुआ था। </span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">शाम को खाना खाने के बाद, राजकुमारियों ने उस सैनिक को अंगूर से बनी शराब पीने के लिये दी। सैनिक ने वो शराब ले तो ली मगर बुढि़या की बात याद करके उसे आँख बचा कर फेंक दिया। थोड़ी देर बाद सैनिक अपने कमरे में जा कर सोने का नाटक करने लगा और ज़ोर ज़ोर से खर्राटे भरने लगा। उसे सोता देख सभी राजकुमारियाँ खुश हो गईं। वो धीरे से उठीं और उन्होंने अपनी पोषाक बदल कर सुंदर पोषाक पहनी। फिर उन्होंने जूतियाँ पहनी और सभी राजकुमारियाँ फ़र्श के एक गुप्त दरवाज़े से निकल कर जाने लगीं। </span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">सैनिक ये सब एक आँख भींचे देख रहा था। जैसे ही राजकुमारियाँ जाने लगीं, वो भी उठा और उसने बुढ़िया की दी हुई कोट पहन ली और राजकुमारियों के पीछे चल पड़ा। सबसे छोटी राजकुमारी सबसे पीछे चल रही थी। गुप्त दरवाज़े से सुरंग की ओर बढ़ते हुए, सीढियों पर, सैनिक का पैर छोटी राजकुमारी की लंबी पोषाक पर पड़ गया। छोटी राजकुमारी घबरा गई और कह उठी कि उसकी पोषाक को किसी ने पीछे से खींचा है। सभी राजकुमारियों ने उसे तसल्ली दी कि वह कुछ और नहीं बल्कि उसका वहम है। </span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">सुरंग में और नीचे जाते-जाते, सभी राजकुमारियाँ एक चाँदी के बगीचे में पहुँचीं। वहाँ फूल, पत्ते, पेड़ आदि सभी चाँदी के बने हुए थे। ये देख कर सैनिक हैरान रह गया। बारहों राजकुमारियाँ वहाँ मिल कर खूब नाचीं। सैनिक ने राजा को सबूत देने के लिये उस बगीचे से एक चाँदी की डाल तोड़ी और अपने जेब में रख ली। डाल के टूटने से एक ज़ोर की आवाज़ आई जिसे सुन कर छोटी राजकुमारी घबरा गई। मगर फिर सभी ने मिल कर उसे समझाया कि वो उसका वहम मात्र है।</span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">सुरंग में और नीचे जाने पर अब एक सोने का बगीचा आया और वहाँ भी राजकुमारियाँ मिल कर खूब नाचीं। उस सैनिक ने वहाँ के सबूत के तौर पर एक सोने की डाल तोड़ ली और अपने जेब में रख ली। आगे और जाने पर इसी तरह एक हीरे का बगीचा आया जहाँ फिर से राजकुमारियाँ मिल कर नाचीं और सैनिक ने वहाँ से भी एक डाल तोड़ कर रख ली। हर बार डालों के टूटने की आवाज़ से छोटी राजकुमारी के डर जाने पर उसे अन्य राजकुमारियों ने वहम का पाठ पढ़ा दिया।</span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">आगे जाने पर आख़िर में एक बड़ी सी झील आई जहाँ बारह सुंदर नौकायें प्रतीक्षा कर रही थीं। हर नौका में एक राजकुमार था और राजकुमारियाँ एक-एक नौका में चली गईं। सैनिक भी छोटी राजकुमारी के नौके में चढ़ गया। नौके को खे रहे राजकुमार ने संदेह प्रकट किया कि आज उसे नौका सामान्य दिनों की अपेक्षा भारी लग रही है, मगर आसपास तो कोई भी नहीं था। तब राजकुमारी ने कहा कि ये सिर्फ़ मौसम की गर्मी का असर है जो हवा की गर्मी और उमस से नौका भी भारी हो गई है।</span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">थोड़ी देर बाद नौकायें एक किनारे पर पहुँचीं। किनारे पर एक सुंदर महल था। महल के अंदर से बाजों की आवाज़ आ रही थी। सभी राजकुमारियाँ नौकाओं से उतर कर महल के अंदर पहुँचीं और वहाँ पहुँच कर वे राजकुमारों के साथ खूब नाचीं। सारी रात इस तरह नाचने से उनकी जूतियाँ तार-तार हो गईं। अंगूर की शराब पीने और लाजवाब खाना खाने के बाद राजकुमारियाँ नौकाओं में बैठ कर अपने घर लौटने लगीं। सैनिक ने सबूत के रूप में वहाँ से एक शराब का गिलास उठा लिया और अपनी जेब में रख लिया। </span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">इस बार सैनिक बड़ी राजकुमारी की नौका में बैठा और सबसे पहले दौड़ कर अपने कमरे में पहुँच कर सोने का फिर से नाटक करने लगा। राजकुमारियों ने जब उसे अपने कमरे में सोता पाया तो खूब हँसीं और निश्चिंत हो कर सोने चली गईं। </span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">इसी तरह सैनिक ने तीनों रातों को राजकुमारियों का पीछा किया और सबूत जमा किये। चौथे दिन, सैनिक ने राजा को पूरी कहानी सुनाई और सबूत पेश किये। अब राजकुमारियाँ कोई बहाना नहीं बना पाईं और तब सैनिक ने पुरस्कार स्वरूप बड़ी राजकुमारी से शादी कर ली और बाद में एक अच्छा राजा बन कर बहुत दिनों तक राज किया।</span></div><br /><div></div><br /><div>समाप्त</div><div></div>Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी http://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-5367913506701613848.post-51444248387703216922009-04-11T18:39:00.000-07:002009-04-11T19:08:25.807-07:00बारह राजकुमारियाँ- भाग १<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8VyoJC0O7BIPDm6BUoTi0QTKxKJinKzwxGp0aMzVbyd8WPK7byWTx3y22Bnc2oDvrkH4GhKCMb8T-6FakYck5Z9Q9rkBnPkjoM6H5WXcn4P_7ruXNBHdt76V8hhO2V6FWW5Qg5xG-3oY0/s1600-h/The-Twelve-Dancing-Princess.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5323620660891288018" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 269px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh8VyoJC0O7BIPDm6BUoTi0QTKxKJinKzwxGp0aMzVbyd8WPK7byWTx3y22Bnc2oDvrkH4GhKCMb8T-6FakYck5Z9Q9rkBnPkjoM6H5WXcn4P_7ruXNBHdt76V8hhO2V6FWW5Qg5xG-3oY0/s320/The-Twelve-Dancing-Princess.jpg" border="0" /></a><br /><div><span style="font-size:130%;">बहुत समय पहले की बात है। किसी राज्य में एक राजा शासन करता था। उसकी बारह बेटियाँ थीं। सभी बेहद सुंदर थीं। मगर राजा के लिये एक बड़ी समस्या थी। बारहों राजकुमारियों को रोज़ नयी जूतियाँ चाहिये होती थीं क्योंकि रोज़ ही उनकी जूतियाँ पूरी तरह से फटी होती थीं, कुछ इस तरह से कि लगता था कि कोई सारे दिन या रात भर जूतियाँ पहन कर नाचा हो। राजा के लाख पूछने पर भी राजकुमारियाँ इस का कारण नहीं बताती थीं कि उन्हें रोज़ जूते बदलने की क्या आवश्यकता होती है और उनकी जूतियाँ रोज़ फट कैसे जाती हैं। </span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">एक दिन राजा ने तंग आ कर सारे देश में ऐलान कर दिया कि जो कोई भी इस राज़ से पर्दा उठा सकेगा, उस व्यक्ति को पुरस्कार स्वरूप न सिर्फ़ उसके पसंदीदा राजकुमारी से शादी करने का मौक़ा दिया जायेगा बल्कि उस देश का उत्तराधिकारी भी बना दिया जायेगा। इस काम के लिये उस व्यक्ति विशेष को तीन दिन का समय दिया जायेगा और अगर वो इस राज़ से पर्दा उठाने में असमर्थ रहा तो उसका सर धड़ से अलग कर दिया जायेगा। </span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><div><span style="font-size:130%;">कई अन्य राज्यों से अनेक राजकुमार अपना अपना भाग्य आज़माने आये। मगर तीन दिन तक उन राजकुमारियों के साथ साथ रहने पर भी वो इस बात का पता नहीं कर सके कि उन राजकुमारियों को अपनी जूतियाँ बदलने की ज़रूरत क्यों होती है। इस तरह अनेक राज्कुमारों और अनेक लोगों ने अपनी जान गँवाई, मगर राजकुमारियों उस राज़ पर पर्दा पड़ा रहा। </span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><div><span style="font-size:130%;">उसी समय की बात है जब एक अधेड़ उम्र का सैनिक, जो कि किसी जंग में काफ़ी ज़ख़्मी हो चुका था, उसी राज्य से गुज़र रहा था। उसे जब राजा के इस अजीबोग़रीब घोषणा और पुरस्कार का पता चला तो वो भी अपना भाग्य आज़माने को मचल पड़ा। उसी राज्य में उसकी मुलाक़ात एक बुढ़िया से हुई जिसकी उसने मदद की। बुढिया ने उससे ख़ुश हो कर कहा कि अगर तुम सचमुच उन राज्कुमारियों के राज़ का पर्दाफ़ाश करना चाहते हो तो दो बातों का ध्यान रखना। पहला ये कि कभी भी उन राजकुमारियों द्वारा दिया हुआ कोई भी पेयपदार्थ मत पीना और ये कोट रख लो। इस कोट को तुम जब भी पहनोगे तो तुम ग़ायब हो जाओगे। तुम्हें तो कोई देख नहीं पायेगा मगर तुम सभी को देख सकोगे। </span></div><div><span style="font-size:130%;">तब वह सैनिक उस बुढ़िया को धन्यवाद कह और वह कोट ले कर राजा के महल में अपना भाग्य आज़माने पहुँच गया।</span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><div><span style="font-size:130%;">क्रमश:</span></div><div><span style="font-size:78%;"></span> </div><div><span style="font-size:78%;">ऊपर दिया चित्र सौजन्य: </span></div><div><a href="http://www.kids-pages.com/folders/puzzles/The_Twelve_Dancing_Princesses/page1.htm"><span style="font-size:78%;">http://www.kids-pages.com/folders/puzzles/The_Twelve_Dancing_Princesses/page1.htm</span></a></div><br /><div></div><br /><div></div><br /><div></div><br /><div></div>Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी http://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-5367913506701613848.post-41663982019077187602009-03-03T14:36:00.000-08:002009-03-30T04:44:23.108-07:00सुखू और दुखू (आख़िरी भाग)<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGqNvAfdjchyphenhyphen7YnbnZMWVcpffyu-Z71cbyISK3OGAjo3iKevJ2EU6GX8dkPEulJrfNTtuLos9k_sh0cP1msmHFN1MqcRGjwK-M0ECI9EAVIavcK3nK1a5jJQigBfZlrjW1mFbSVzymGJE5/s1600-h/moon.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5309101481305424322" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 114px; CURSOR: hand; HEIGHT: 118px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgGqNvAfdjchyphenhyphen7YnbnZMWVcpffyu-Z71cbyISK3OGAjo3iKevJ2EU6GX8dkPEulJrfNTtuLos9k_sh0cP1msmHFN1MqcRGjwK-M0ECI9EAVIavcK3nK1a5jJQigBfZlrjW1mFbSVzymGJE5/s320/moon.jpg" border="0" /></a><br /><div><a href="http://pareekatha.blogspot.com/2009/02/blog-post.html">गतांक से</a> आगे</div><br /><div><span style="font-size:130%;">घर वापस आते समय, दुखू को रास्ते में घोड़ा मिला। घोड़े ने दुखू को देख कर खुश होते हुये उसका हाल पूछा उअर उसे उपहार में एक छोटा बच्चा घोड़ा दिया। दुखू खुशी से फूली न समाई। अब वो उस घोड़े पर बैठ कर अपने घर की ओर जाने लगी। आगे और चल कर उसे रास्ते में केले का पेड़ मिला। उस केले के पेड़ ने भी दुखू का हाल-चाल पूछा और उसे एक केले का बड़ा सा गुच्छा तोहफ़े में दिया। दुखू उसे भी साथ ले कर खुशी खुशी अपने घर की ओर चल पड़ी। आगे और जा कर उसे गाय मिली, जिसने उसे उपहार में एक बछड़ा दिया। दुखू ये सब ले कर अपने घर पहुँची। दुखू को देख कर उसकी मां बहुत खुश हुई। रात को जब दुखू ने अपना छोटा सा पिटारा खोला तो उसमें से एक राज कुमार निकला और उसने दुखू की मां से दुखू का हाथ माँगा। दुखू की माँ बहुत ख़ुश हुई और दुखू अब शादी के बाद बड़े से महल में रहने लगी।</span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">दुखू और उसकी मां की तरक्की देख कर सुखू और उसकी मां जलभुन कर राख हो गये। एक दिन सुखू ने दुखू से मिल कर पूछ लिया कि आखिर ये सब हुआ कैसे। दुखू ने सुखू को सब सच सच बता दिया। तब एक दिन सुखू भी रूई ले कर बैठी और झूठ मूठ चरखा कातने लगी। तब हवा आकर उसकी भी रूई उड़ा कर ले गई। सुखू ने भी खूब हाय तौबा मचाई। तब हवा ने आकर सुखू को भी उसके साथ आने को कहा। सुखू हवा के पीछे हो ली।</span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">आगे चल कर सुखू को वही गाय मिली। गाय फिर गंदगी में पड़ी थी। उसने सुखू से कहा कि वो उसके आसपास को ज़रा साफ़ कर दे। मगर सुखू ने तेज़ आवाज़ में कहा," मैं क्यों करूँ? मुझे अभी बहुत काम है, मैं हवा के साथ जा रही हूँ, चांद की मां से मिलने।" ऐसा कह कर सुखू हवा के साथ आगे निकल गई। इसी तरह उसे आगे रास्ते मॆं केले का पेड़ और घोड़ा भी मिले। मगर सुखू ने उनकी भी कोई मदद नहीं की। </span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">हवा के साथ आगे चल कर उसे भी चांद की मां का महल दिखा। वो चिल्लाते हुये अंदर घुसी और कहा, " ए बुढ़िया, मुझे जल्दी से रूई दे दे, जो कि हवा उड़ा लाया है।" चांद की मां को बुरा लगा मगर उसने सुखू से कहा कि वो बांये के कमरे में जा कर कुछ खा ले और बाद में दाहिने कमरे में जा कर अपनी पसंद का एक पिटारा ले ले। सुखू ने ज़रूरत से ज़्यादा पेट भर कर खाया और अब दूसरे कमरे मॆं जा कर पिटारा लेने गई। उसे वहाँ कई छोटे बड़े पिटारे दिखे। उसने चुन कर एक सबसे भारी और बड़ा पिटारा लिया और उसे सर पर लाद कर, बूढ़ी चाँद की मां को कोई धन्यवाद किये बिना ही वहाँ से निकल गई। </span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">घर वापस जाते वक्त रास्ते में सुखू को घोड़ा मिला। घोड़े ने उसे ज़ोर से दुलत्ती मारी और सुखू वहाँ से रोते रोते भागी। आगे और जाने पर उसे केले का पेड मिला। केले के पेड़ ने भी उसे सबक सिखाने के लिये अपने डाल से उस पर वार किया। बड़े से भारी बक्से के साथ सुखू किसी तरह हाँफ़ते हांफ़ते घर की भागी। आगे और जाने पर उसे रास्ते में गाय मिली। गाय ने भी उसे सींग से मारा। सुखू रोते रोते, गिरते पड़ते अपने घर पहुँची। सुखू की मां उसका बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। उसकी ये हालत देख कर वो परेशान हो गई और कहा, चलो अब ये बक्सा खोलो। बक्से के खोलते ही, उसमें से एक बड़ा सा साँप निकला और सुखू को निगल गया। सुखू की माँ वो गाँव छोड़ कर चली गई।</span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">इसलिये हमें चाहिये कि हम सब का भला सोचें और सबका भला करें। अच्छे का फल अच्छा होता है और बुरे का बुरा।</span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div>Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी http://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-5367913506701613848.post-78729619097766246532009-02-18T14:48:00.000-08:002009-03-03T15:13:36.975-08:00सुखू और दुखू- पहला भाग<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmk_BkcuFMY5DBCxpuv2kFC-Ook3UMFs8jAVoM2XfmDwmj0-vDAD6oXoXpeiRk1eoj_kDUOWvWgp02hEWc05V2JBnAqCVXBg5imj6ax94ifFieK_n7LcaKKjYLkphhpmpYK-HfTGx0rsJn/s1600-h/moon.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5304281373904734146" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 114px; CURSOR: hand; HEIGHT: 118px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgmk_BkcuFMY5DBCxpuv2kFC-Ook3UMFs8jAVoM2XfmDwmj0-vDAD6oXoXpeiRk1eoj_kDUOWvWgp02hEWc05V2JBnAqCVXBg5imj6ax94ifFieK_n7LcaKKjYLkphhpmpYK-HfTGx0rsJn/s320/moon.jpg" border="0" /></a><br /><div><span style="font-size:130%;">बंगाल के छोटे से गाँव में दो बहनें रहती थीं- सुखू और दुखू। सुखू और दुखू सौतेली बहनें थीं। उनके पिता सुखू और उसकी मां को ज़्यादा प्यार करते थे। सुखू और उसकी मां, दुखू और उसकी मां के साथ बुरा व्यवहार करतीं। थोड़े समय के बाद, सुखू और दुखू के पिता बीमार हो कर स्वर्ग सिधार गये और सुखू और उसकी मां को सारी संपत्ति का अधिकारी बना गये। तब दुखू और उसकी मां को सुखू की मां ने घर से निकाल दिया। ऐसे में दुखू अपनी मां के साथ पास ही एक कुटिया बना कर रहने लगीं। उनके दिन बड़े ही दुख और ग़रीबी में बीत रहे थे। </span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">एक दिन की बात है, दुखू बैठ कर चरखा कात रही थी कि हवा आकर उसकी रूई उड़ा ले गई। दुखू पहले तो हवा के पीछे भागी मगर उसे न पकड़ पाई और रोने लगी। तभी हवा ने उससे कहा, " रो नहीं दुखू, तुम मेरे साथ आओ मैं तुम्हें रूई दूँगी।" दुखू ये सुन कर हवा के पीछे पीछे चलने लगी।</span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">रास्ते में जाते जाते उसकी मुलाक़ात एक गाय से हुई। गाय ने दुखू से कहा," दुखू ज़रा रुको, मेरी आसपास की जगह देखो, गोबर से भरी पड़ी है, इसे ज़रा साफ़ कर के जाओ।" दुखू ने रुक कर गाय के चारों तरफ़ की ज़मीन को साफ़ किया और फिर हवा के पीछे चल पड़ी।</span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">और आगे जाकर दुखू को एक केले का पेड़ मिला। पेड़ पर जाले लगे हुये थे और वो हवा के साथ खेल नहीं पा रहा था। तब केले के पेड़ ने कहा, " दुखू, ज़रा देर रुको और मेरे जाले को साफ़ कर दो"। दुखू ने रुक कर पेड़ के पत्तों से जाले हटाये और अब पेड़ हवा के साथ खेलने लगा। दुखू फिर हवा के पीछे चल पड़ी।</span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">थोड़ी दूर और जाने पर उसे एक घोड़ा मिला। घोड़े ने दुखू को रोक कर कहा," दुखू, क्या तुम मेरे लिये थोड़ी घास ला दोगी? मैं बँधा हूँ इसलिये दूर जा कर घास नहीं खा सकता।" दुखू उसके लिये घास ले आई और घोड़े ने घास खाई। दुखू फिर हवा के पीछे चल दी।</span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">हवा के पीछे चलते चलते वो बादल के गाँव आ पहुँची। हवा ने उसे बादलों के बीच एक महल दिखाया और कहा," वहाँ चाँद की मां रहती है। उसके पास बहुत रूई है, तुम उससे जा अक्र रूई ले लो। दुखू धीरे धीरे उस महल के अंदर गई। वहाँ एक बुढि़या बैठी चरखा कात रही थी। उसने बड़े प्यार से दुखू से कहा," बेटा तुम थकी हो, कुछ खा लो। मेरे बायें पास के कमरे में खाना रखा है।" </span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">दुखू ने बायें पास के कमरे में जा कर देखा तो वहाँ नाना तरह के व्यंजन रखे थे- पूरियाँ, आलूदम, रसगुल्ले, मिठाई, चमचम और भी जाने क्या क्या। उसने पेट भर कर खाना खाया और फिर बुढिया मां के पास आई और कहा," दादी मां, हवा मेरी रूई उड़ा लाई है। आपके पास बहुत रूई है, क्या मुझे थोड़ा सा दे सकती हैं?"</span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">बूढ़ी मां ने दुखू से कहा," बेटा मैं तुम्हें और बहुत कुछ दूँगी। तुम मेरे दाहिने पास के कमरे में जा कर देखो। वहाँ तुम्हें कई पिटारे मिलेंगे। कोई भी ले लो"।</span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">दुखू ने दाहिने पास के कमरे में जा कर देखा तो वहाँ कई पिटारे रखे थे, छोटे बड़े, बहुत बडे। दुखू ने एक छोटा सा पिटारा उठाया और दादी मां को प्रणाम कर वापस घर के लिये निकल पड़ी।</span> </div><div><strong><span style="font-size:130%;"><a href="http://pareekatha.blogspot.com/2009/03/blog-post.html">क्रमश:</a>(आगे की कहानी के लिये क्लिक करें)</span></strong></div>Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी http://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-5367913506701613848.post-56137178524625405182008-12-09T13:34:00.000-08:002015-01-13T17:15:17.902-08:00क्रिसमस के तोहफ़े- बाल-कविता<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgOqjsSsm5vxycukvGAcvvdgSYkC1CGBk5kliYsrNPxFJLuKbdBk3IGIJsjbygHXbjJ-be92wVax-R9aCw7afWgws2n0sPJqzS_heNRiHJ-tHbrf-uoy0qquR7ATh3G4xXMGJ9MSwj13Ya4/s1600-h/santa.gif"><img alt="" border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgOqjsSsm5vxycukvGAcvvdgSYkC1CGBk5kliYsrNPxFJLuKbdBk3IGIJsjbygHXbjJ-be92wVax-R9aCw7afWgws2n0sPJqzS_heNRiHJ-tHbrf-uoy0qquR7ATh3G4xXMGJ9MSwj13Ya4/s320/santa.gif" id="BLOGGER_PHOTO_ID_5277910454414037410" style="display: block; height: 254px; margin: 0px auto 10px; text-align: center; width: 320px;" /></a><br />
<div>
<br /></div>
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</div>
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<span style="font-size: 130%;"><strong><span style="color: #990000;">देखो-देखो बरफ़ गिरी है</span></strong></span><br />
<span style="font-size: 130%;"><strong></strong></span><span style="color: #990000; font-size: 130%;"><strong>कितनी प्यारी मखमल सी है</strong></span><br />
<span style="color: #990000; font-size: 130%;"><strong></strong></span><span style="color: #6633ff; font-size: 130%;"><strong></strong></span><span style="color: #6633ff; font-size: 130%;"><strong>बर्फ़ के गुड्डे मन को भायें</strong></span><br />
<span style="color: #6633ff; font-size: 130%;"><strong>चलो सभी के संग बनायें</strong></span><br />
<span style="color: #6633ff; font-size: 130%;"><strong></strong></span><span style="font-size: 130%;"><strong><span style="color: #993399;">गोल-मोल से लगते प्यारे</span></strong></span><br />
<span style="font-size: 130%;"><strong><span style="color: #993399;">गाजर नाक लगाये सारे</span></strong></span><br />
<span style="font-size: 130%;"><strong></strong></span><span style="font-size: 130%;"><strong><span style="color: #006600;">आया जो क्रिसमस का मौसम</span></strong></span><br />
<span style="font-size: 130%;"><strong><span style="color: #006600;">घर बाहर को कर दें रोशन</span></strong></span><br />
<span style="font-size: 130%;"><strong></strong></span><span style="color: red; font-size: 130%;"><strong>राजू क्यों है आज उदास</strong></span><br />
<span style="color: red; font-size: 130%;"><strong>आओ चल कर पूछें पास</strong></span><br />
<span style="color: red; font-size: 130%;"><strong></strong></span><span style="color: #993300; font-size: 130%;"><strong>मम्मी बोली उसकी अब के</strong></span><br />
<span style="color: #993300; font-size: 130%;"><strong>होंगे नहीं क्रिसमस पे तोहफ़े</strong></span><br />
<span style="color: #993300; font-size: 130%;"><strong></strong></span><span style="color: #333333; font-size: 130%;"><strong>उसने मां को खू़ब सताया</strong></span><br />
<span style="color: #333333; font-size: 130%;"><strong>इसीलिये ये दंड </strong></span><span style="color: #333333;"><span style="font-size: 21px;"><b>है </b></span></span><strong style="color: #333333; font-size: 130%;">पाया</strong><br />
<span style="color: #333333; font-size: 130%;"><strong></strong></span><span style="color: #993399; font-size: 130%;"><strong>सैन्टा उनको तोहफ़ा देते</strong></span><br />
<span style="color: #993399; font-size: 130%;"><strong>मम्मी का जो कहना सुनते</strong></span><br />
<span style="color: #993399; font-size: 130%;"><strong></strong></span><span style="color: red; font-size: 130%;"><strong>हम अच्छे बच्चे बन जायें</strong></span><br />
<span style="color: red; font-size: 130%;"><strong>सुंदर-सुंदर तोहफ़े पायें</strong></span><br />
<div>
</div>
Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी http://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-5367913506701613848.post-67793266677676707272008-11-14T13:51:00.000-08:002009-03-03T15:09:20.398-08:00बाल दिवस पर: रम-पल-स्टिल्ट-स्किन- आखिरी भाग<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDrwcWHpFrRyZUfqdx4GmbR4t4HfhfDcDJm89uq6ORzxVdb2hU5ugw1runL-5YSXficPyoTKakRh8tv-4xV-haR6vQgMozriIDSheCyUvJRUKEhuKXlYjDJ8wb495XbFMXK19XW79cik1d/s1600-h/rumpelstiltskin.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5268641728757328866" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 112px; CURSOR: hand; HEIGHT: 149px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiDrwcWHpFrRyZUfqdx4GmbR4t4HfhfDcDJm89uq6ORzxVdb2hU5ugw1runL-5YSXficPyoTKakRh8tv-4xV-haR6vQgMozriIDSheCyUvJRUKEhuKXlYjDJ8wb495XbFMXK19XW79cik1d/s320/rumpelstiltskin.jpg" border="0" /></a><br /><div><span style="font-size:130%;"><a href="http://pareekatha.blogspot.com/2008/11/blog-post.html">गतांक</a> से आगे-</span><br /><span style="font-size:130%;"></span><br /><span style="font-size:130%;">शादी के बाद किसान की बेटी रानी बन कर ख़ुशी ख़ुशी रहने लगी। एक साल बाद उसके एक बेटा हुआ। वो अपने बच्चे से बहुत प्यार करती थी। </span><br /><span style="font-size:130%;"></span><br /><span style="font-size:130%;">एक रात जब वो अपने बच्चे को सुला रही था, उसके कमरे में वही बौना फिर प्रकट हुआ। रानी उसे देख कर डर गई। बौने ने रानी से वादानुसार उसका बेटा देने की बात कही। मगर अब रानी को मां की ममता का पता चल चुका था, वो किसी भी हालत में अपने बच्चे से अलग नहीं होना चाहती थी। उसने बड़ी मन्नतें की, गिड़गिड़ाई और कुछ भी और माँग लेने को कहा। मगर बौना उसके बच्चे को ले जाने ही आया था। रानी रोने लगी और उसकी इतनी मिन्नतें करने पर बौने को थोड़ी दया आ गई। तब उसने रानी से कहा," ठीक है, मैं तुम्हें तीन दिन का समय देता हूँ, तुम अगर इन तीन दिनों में मेरा नाम मुझे बता सको तो मैं इस बच्चे को नहीं ले जाऊँगा।"</span><br /><span style="font-size:130%;"></span><br /><span style="font-size:130%;">रानी से सारे देश में हरकारे दौड़ाये। जंगल जंगल, शहर शहर, नगर नगर, हर जगह हरकारे तरह तरह के नामों की खोज में निकल गये। अगली रात को जब बौना रानी के पास आया तो रानी ने उससे पूछा," क्या तुम्हारा नाम, शीप्स्कैम्प है?" " नहीं" " क्या रात्बाती?" " नहीं " क्या जान"? "नहीं" और बौना कल फिर आने का वादा कर के चला गया। अगली रात को भी रानी उसे उसका सही नाम नहीं बता पाई। </span><br /><span style="font-size:130%;"></span><br /><span style="font-size:130%;">इस बीच एक हरकारा जंगल से गुज़र रहा था। उसने अचानक जंगल के बीच एक छोटी सी आग जलती देखी। हरकारा एक पेड़ के पीछे छुप कर देखने लगा। आग के चारों तरफ़ एक बौना आदमी गा-गा कर नाच रहा था। </span><br /><span style="font-size:130%;"></span><br /><span style="font-size:130%;">"बड़े मज़े हैं मेरे अब तो</span><br /><span style="font-size:130%;">लाऊँ रानी के बच्चे को </span><br /><span style="font-size:130%;">देगी वो मेरे असल नाम के बिन</span><br /><span style="font-size:130%;">नाम है मेरा रम्पल स्टिल्ट स्किन"</span><br /><span style="font-size:130%;"></span><br /><span style="font-size:130%;">हरकारे ने ये सुना और दौड़ कर रानी के पास गया। रानी को उसने सारी बातें बताई। रानी को यकीन हो गया कि ये और कोई नहीं वही बौना है।</span><br /><span style="font-size:130%;"></span><br /><span style="font-size:130%;">अगली रात को जब बौना आया और उसने अपना नाम पूछा, तब रानी ने कहा," क्या तुम्हारा नाम पीटर है?" " नहीं" फिर " कान्रैड?" " हा-हा, नहीं" " फिर क्या रम-पल-स्टिल्ट स्किन?" बौना एक दम से घबरा कर गुस्से से चिल्लाया, तुम्हें ये किसी शैतान ने बताया है, शैतान ने ही बताया है। और ऐसा कहते कहते उसने अपने दाहिने पैर को इतने ज़ोर से पटका कि उसका पैर ज़मीन में बहुत नीचे तक गड़ गया। फिर गुस्से में उसने अपने हाथों से अपनी बायीं पैर को इतनी ज़ोर से खींचा कि उसके दो टुकड़े ही हो गये। </span><br /><span style="font-size:130%;"></span><br /><span style="font-size:130%;">रानी अपने बच्चे और राजा के साथ ख़ुशी खु़शी रहने लगी।</span></div>Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी http://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5367913506701613848.post-12968438741676497792008-11-13T17:47:00.000-08:002009-03-03T15:09:20.398-08:00बाल दिवस पर: रम-पल-स्टिल्ट-स्किन- पहला भाग<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgpQjabPqdqIg0BronFxi8f_Dxo949bnZjJkD-BeDeCVceYDYSgyyMaaWOCzU_IGI4kS6aQiVL04-GZjSj5guYLkKbMwcuX63dj29rfg-bgeIywTGreMzUiPoFXCm1P-fXkDddXrPF3fh5B/s1600-h/rumpelstiltskin.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5268331525809218418" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 169px; CURSOR: hand; HEIGHT: 190px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgpQjabPqdqIg0BronFxi8f_Dxo949bnZjJkD-BeDeCVceYDYSgyyMaaWOCzU_IGI4kS6aQiVL04-GZjSj5guYLkKbMwcuX63dj29rfg-bgeIywTGreMzUiPoFXCm1P-fXkDddXrPF3fh5B/s320/rumpelstiltskin.jpg" border="0" /></a><br /><div><span style="font-size:130%;">बहुत दिनों पहले की बात है। किसी देश में एक ग़रीब किसान एक गाँव में रहता था। उसकी एक सुंदर बेटी थी। एक दिन किसान कुछ पैसे बनाने के लालच में, उस देश के राजा के पास गया और कहा कि उसकी बेटी भूसे को कात कर सोना बना सकती है। राजा ने किसान से ख़ुश हो कर उसे अपनी बेटी को महल ले आने का आदेश दिया और कहा कि अगर उसकी बेटी सच में ऐसा कर सकती है तो वो उस से शादी कर लेगा, मगर अगर ये झूठ निकला तो वो बेटी और पिता दोनों का सर कलम करवा देगा। </span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">किसान अपनी बेटी को महल ले गया। राजा ने एक बड़े से भूसे से भरे कमरे में उस लड़की को भेज दिया जहाँ एक चरखा भी रखा था। किसान की बेटी को कुछ पता नहीं था कि वो क्या करे। जान चले जाने के डर से वो कुछ कह भी नहीं पाई। बंद कमरे में वो रोती रही। रात के बारह बजे अचानक कमरे का दरवाज़ा खुला और एक बौना आदमी अंदर आया। उसे देख कर किसान की बेटी डर गई मगर बौने ने उसे ढाँढस बँधाया और उससे उसके रोने का कारण पूछा। रोते रोते किसान की बेटी ने सारी बात बताई और कहा कि उसे भूसे से सोना बनाना नहीं आता। तब बौने आदमी ने उससे पूछा कि अगर वो सारे भूसे को सोना बना दे तो उसे क्या मिलेगा। किसान की बेटी ने अपनी उंगली मॆं पहनी हुई अंगूठी को उस बौने को दे देने का वादा किया। तब बौने ने सारी रात चरखे पर काम कर के भूसे को सोने में बदल दिया और सुबह लड़की से अंगूठी ले कर चला गया।</span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">अगली सुबह राजा कमरे में सोना देख कर फूला नहीं समाया। मगर उसके मन में लालच आ गया और उसने किसान की बेटी को एक भूसे से भरा और भी बड़ा कमरा दिया और सारे भूसे को फिर से सोने में बदलने को कहा। किसान की बेटी अब फिर मुसीबत भाँप कर रोने लगी। रात के ठीक बारह बजे, फिर दरवाज़ा खुला और बौना प्रकट हुआ। इस बार लड़की के गले के हार के बदले बौने ने उसका काम करने का वादा किया। </span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">अगली सुबह राजा सोना देख कर बहुत ख़ुश हुआ और किसान की बेटी को एक और भूसे से भरे बड़े कमरे में ले गया। इस बार उसने लड़की से वादा किया कि अगर वो इस सारे भूसे को सोने में बदल दे तो वो कल ही उस से शादी कर लेगा। किसान की बेटी कमरे में बंद हो कर रात के बारह बजे का इंतज़ार करने लगी। </span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">रात के ठीक बारह बजे बौना प्रकट हुआ। उसने किसान की बेटी से फिर वही सवाल किया, " तुम मुझे इस काम के बदले क्या दोगी?" किसान की बेटी के पास और कुछ बाक़ी नहीं था। उसने कहा." मेरे पास अब और कुछ नहीं"। तब बौने ने कहा," ठीक है, फिर जब तुम्हारी राजा से शादी हो जायेगी, तब तुम मुझे अपना पहला बेटा दे देना।" किसान की बेटी ने झट मान लिया। उसे तब मां की ममता का अहसास नहीं था। अपनी जान बचाना उसे उस समय ज़्यादा ज़रूरी लगा। सारी रात बौने ने चरखे पर काम किया और उस कमरे में रखे सारे भूसे को सोने में बदल दिया और सुबह एक साल बाद फिर आने का वादा कर के चला गया।</span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;">अगले दिन सुबह राजा सोना देख कर बहुत ख़ुश हुआ और उसने किसान की बेटी से शादी कर ली...</span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"></span></div><br /><div><span style="font-size:130%;"><a href="http://pareekatha.blogspot.com/2008/11/blog-post_14.html">क्रमश:</a></span></div>Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी http://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-5367913506701613848.post-19657858932026871552008-09-24T14:42:00.000-07:002009-03-03T15:09:20.399-08:00हालूम खा - आख़िरी भाग<div align="center"><u><span style="color:#0000ff;"></span></u></div><div align="center"><u><span style="color:#0000ff;"></span></u></div><div align="center"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjHRkHIhGPkBs7yurNMZ6l-6d4_fTJkH57TO7fcKHeRjPyrBVCMjyC6x2j3XvEH_xbnGGEdYTx0WlrQKXeVk9aeEzgG2sRmsh81wOpmmzB1kwbtrebKxHL7tkt824ZAUYcWi-G25jP4-Wa1/s1600-h/cartoon-monsters-picture.gif"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5249714806007737346" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; CURSOR: hand; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjHRkHIhGPkBs7yurNMZ6l-6d4_fTJkH57TO7fcKHeRjPyrBVCMjyC6x2j3XvEH_xbnGGEdYTx0WlrQKXeVk9aeEzgG2sRmsh81wOpmmzB1kwbtrebKxHL7tkt824ZAUYcWi-G25jP4-Wa1/s320/cartoon-monsters-picture.gif" border="0" /></a> <span style="font-size:78%;">चित्र: सौजन्य से: </span><a href="http://www.how-to-draw-cartoons-online.com/"><span style="font-size:78%;">how-to-draw-cartoons-online.com</span></a><br /><div align="left"><span style="font-size:130%;"></span></div><div align="left"><span style="font-size:130%;"><a href="http://pareekatha.blogspot.com/2008/09/blog-post_18.html">गतांक</a> से आगे</span></div><div align="left"><br /><span style="font-size:130%;">विमला और कमला की मां ने अपनी जादू की छड़ी घुमाई। सारे गाँव में जादू फैल गया। हालूम खा अपने घर का रास्ता भूल गया और कई कोशिशों के बाद भी , अपने घर जाने के रास्ते से विमला और कमला के घर के दरवाज़े पर पहुँच गया। आखिर में थक हार कर हालूम खा ने उनके घर का दरवाज़ा खटखटाया। उसने सोचा कि आज की रात इसी घर में काटी जाये। विमला-कमला की मां ने दरवाज़ा खोला। हालूम खा को बड़े ज़ोरों की नींद आ रही था। उसने घर में घुसते ही सोने के लिये जगह माँगी। विमला कमला की मां ने उसे फ़र्श पर पड़े एक भूसे का ढेर दिखा दिया। हालूम खा वहीं पड़ कर सो गया।</span><br /><span style="font-size:130%;"></span><br /><span style="font-size:130%;">हालूम खा के सोते ही, विमला और कमला की मां ने रस्सी से बँधे झोले को खोला, कमला को उस झोले से निकाला और उसमें बड़े बड़े पत्थर, साँप, और काँटे आदि डाल कर झोले को फिर बंद कर दिया।</span><br /><span style="font-size:130%;"></span><br /><span style="font-size:130%;">अगली सुबह, हालूम खा घर से किसी को बिना कुछ बोले ही निकल गया और अपने घर की ओर जाने लगा। उसका घर पहाड़ी के पीछे था, सो पहाड़ी चढ़ते वक्त, उसके पीठ पर भारी पत्थर पड़ने लगे। हालूम खा ज़ोर से हँसा, " हा हा हा, तू छोटी सी लड़की, मुझे क्या मुक्के मारेगी, मैं तो अभी तुझे घर जा कर भून कर खा जाऊँगा, बस थोड़ी देर और...हा हा हा"। हालूम खा की भयानक आवाज़ सुन कर साँप ’हिस्स हिस्स’ करने लगे। हालूम खा को लगा कि छोटी लड़की रो रही है। उसने फिर कहा, " हा हा हा, तू छोटी सी लड़की, अब रोना बंद कर, मैं तो अभी तुझे घर जा कर भून कर खा जाऊँगा, बस थोड़ी देर और...हा हा हा"। जब उसके पीठ पर काँटे चुभने लगे, तो हालूम खा ने फिर कहा, " हा हा हा, तू छोटी सी लड़की, मुझे क्या नोचेगी, मैं तो अभी तुझे घर जा कर भून कर खा जाऊँगा, बस थोड़ी देर और...हा हा हा"।</span><br /><span style="font-size:130%;"></span><br /><span style="font-size:130%;">घर पहुँच कर हालूम खा ने अपनी पत्नी से कहा, " सुनती हो, ज़रा इस बच्ची को झोले से निकाल कर, नमक मिर्च लगा कर, भून कर लाओ, अच्छा नाश्ता मिला है आज"। हालूम खा की पत्नी जैसे ही झोले को खोलने गई, वैसे ही साँपों की हिस्स हिस्स सुन कर डर गई और हालूम खा से बोली, " ना बाबा, मुझे तो डर लगता है, कैसी आवाज़ आ रही है झोले से"। हालूम खा ज़ोर से हँसा और बोला," अरे तुम इतने से ही डर गईं, मैं नहीं रहूँगा जब तब जाने तुम लोगों का क्या होगा।" फिर उसने अपने बड़े बेटे को बुलाया और कहा," ए बड़कू, ज़रा इस बच्ची को झोले से निकाल कर, नमक मिर्च लगा कर, भून कर ला, अच्छा नाश्ता मिला है आज"। बड़कू भी साँप की हिस्स हिस्स सुन कर डर गया और बोला, " ना बाबा, मुझे तो डर लगता है, कैसी आवाज़ आ रही है झोले से"। हालूम खा फिर ज़ोर से हँसा, और बोला, ," अरे तू इतने से ही डर गया, मैं नहीं रहूँगा जब, तब जाने तुम लोगों का क्या होगा।" अब उसने अपने छोटे बेटे को आवाज़ दी और कहा, " ए छुटकू, ज़रा इस बच्ची को झोले से निकाल कर, नमक मिर्च लगा कर, भून कर ला, अच्छा नाश्ता मिला है आज"। छुटकू भी साँप की हिस्स हिस्स सुन डर गया और बोला, " ना बाबा, मुझे तो डर लगता है, कैसी आवाज़ आ रही है झोले से"। हालूम खा फिर और ज़ोर से हँसा, और बोला, ," अरे तू भी इतने से ही डर गया, मैं नहीं रहूँगा जब, तब जाने तुम लोगों का क्या होगा।" </span><br /><span style="font-size:130%;"></span></div><div align="left"><span style="font-size:130%;">आख़िरकार हालूम खा खुद ही उठा और किसी भी आवाज़ की परवाह किये बग़ैर ही उसने झोले को खोल डाला। झोले में से दो बड़े बड़े साँप निकले और हालूम खा को खा गये। हालूम खा की पत्नी और बच्चे डर के मारे पहाड़ी छोड़ कर कहीं दूर चले गये। इस तरह हालूम खा का आतंक पूकुरग्राम से खत्म हो गया और सभी लोग खुशी खु़शी रहने लगे।</span></div></div>Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी http://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5367913506701613848.post-15701728946464934782008-09-18T20:42:00.000-07:002009-03-03T15:09:20.400-08:00हालूम खा - पहला भाग<div align="center"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7DBlAjIoMkrS5Yp-2pR5L2sjwgLU4kzqwetxDM-APQmWuMTCfpAaYkAszVeucorF4ZauJ7Whk8tgSLu6QUK4oXy02wn8U9ZkxfcN0WZGfxRoadsmKNgtZx1mejgewkEKjIzXk0-SDIczT/s1600-h/cartoon-monsters-picture.gif"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5247573465354556194" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; CURSOR: hand; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj7DBlAjIoMkrS5Yp-2pR5L2sjwgLU4kzqwetxDM-APQmWuMTCfpAaYkAszVeucorF4ZauJ7Whk8tgSLu6QUK4oXy02wn8U9ZkxfcN0WZGfxRoadsmKNgtZx1mejgewkEKjIzXk0-SDIczT/s320/cartoon-monsters-picture.gif" border="0" /></a><span style="font-size:78%;"></span></div><div align="center"><span style="font-size:78%;"></span></div><div align="center"><span style="font-size:78%;">चित्र: सौजन्य से:<br /><a href="http://www.how-to-draw-cartoons-online.com/">how-to-draw-cartoons-online.com</a></span></div><div align="center"><span style="font-size:78%;"></span></div><div align="center"><span style="font-size:78%;"></span></div><p><span style="font-size:130%;">बहुत समय पहले की बात है। एक पहाड़ी के नीचे एक सुंदर, हरा भरा गाँव बसा था, पूकुरग्राम। वहाँ सभी लोग बहुत मिल जुल कर रहते थे। मगर उस गाँव की एक समस्या थी। पहाड़ी के पीछे रहता था हालूम खा, जो कि शाम होते ही पहाड़ी से नीचे आकर बच्चे उठा ले जाता था। सभी बच्चों की माँ बहुत परेशान रहती थी । कोई बच्चा शाम को घर से बाहर देर तक नहीं रह पाता और शाम होते ही घर में दुबक जाता। सभी हालूम खा से त्रस्त थे।<br /><br /></span><span style="font-size:130%;"></span><span style="font-size:130%;">उसी गाँव के एक घर में दो लड़कियाँ अपने मां के साथ रहती थीं। कमला और विमला। दोनों बहनों में बहुत प्यार था और वे हमेशा मां का कहा सुनती थीं। एक बार गाँव में किसी बच्चे का जन्मदिन था। उसने गाँव के सभी बच्चों को अपने जन्म दिन पर बुलाया। कमला और विमला को भी निमंत्रण आया। कमला और विमला की माँ ने उनके के लिये सुंदर कपड़े सीये और उनको जाने के लिये तैयार किया। उनकी मां को जादू का ज्ञान भी था। वो इस जादू का इस्तेमाल सिर्फ़ भले कामों के लिये ही करती थीं। न्यौते पर जाने से पहले कमला और विमला को उनकी मां ने एक जादू की टोपी दी और कहा, "इन टोपियों को उतारना नहीं। इन टोपियों को जब तक तुम लोग पहनी रहोगी, तुम्हें हालूम खा नहीं हाथ लगा सकता। मगर शाम से पहले घर आ जाना, देर मत करना।" कमला और विमला, दोनों मां के सीये कपड़े और टोपी पहन कर अपने दोस्त के जन्मदिन के न्यौते पर चली गईं। </span><br /><br /><span style="font-size:130%;">जब शाम होने लगी तो सभी बच्चे अपने-अपने घर जाने लगे। कमला और विमला भी घर की तरफ़ बढ़ने लगे। रास्ते में अचानक विमला का हाथ उसके अपने सर पर गया तो वो चीख उठी। उस के सर पर जादू की टोपी नहीं थी। दोनों बहनें घबरा गईं। तब विमला ने कमला से कहा, "बहन, तू यहीं रुक, मैं अभी वो टोपी ले कर आती हूँ। लगता है जिस बगीचे में हम खेल रहे थे वहाँ गिर गई है टोपी।" विमला दौड़ कर उस छोटे से फूल के बगीचे में अपनी टोपी ढूँढने चली गई। कमला वहीं रुक कर विमला का इंतज़ार करने लगी।<br /></span><br /><span style="font-size:130%;">बगीचे में विमला ने हर तरफ़ देखा। आख़िरकार उसे अपनी टोपी एक फूल के पौधे के नीचे पड़ी मिल ही गई। विमला ने दौड़ कर उस टोपी को उठा लिया और उसे अपने सर पर पहनने ही वाली थी कि पीछे से उसका हाथ दो मज़बूत हाथों ने पकड़ लिया। " हा हा हा, मुझसे कैसे बचोगी। मैं आज तुम्हें पकड़ कर नमक मिर्च लगा कर खाऊँगा"। हालूम खा ने विमला को पकड़ लिया, और अपने झोले में डाल कर अपने घर की ओर चल पड़ा। </span></p><p></p><p><span style="font-size:130%;">उधर कमला ने देखा कि विमला बहुत देर तक नहीं आ रही है, तो उसे शक हो गया कि विमला को शायद हालूम खा ने पकड़ लिया है। वो भाग कर अपने घर चली गई और घर जा कर उसने अपनी मां को सारी बातें बताईं।</span><br /><span style="font-size:130%;"><a href="http://pareekatha.blogspot.com/2008/09/blog-post_24.html">आगे यहाँ पढें</a></span></p>Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी http://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5367913506701613848.post-48914592094940602942008-09-17T17:13:00.002-07:002009-03-03T15:09:20.400-08:00एक राजा और उसकी दो रानियाँ<span style="font-size:130%;">दूर किसी देश में एक राज्य था, कमलापुरी। कमलापुरी के राजा की दो रानियाँ थीं। दोनों ही बड़ी सुंदर थीं। मगर दुर्भाग्यवश बड़ी रानी के बस एक ही बाल थे और छोटी रानी के दो। बड़ी रानी बहुत भोली थी और छोटी रानी को फूटी आँख न सुहाती थी। एक दिन छोटी रानी ने बड़ी रानी से कहा," बड़ी दीदी, आपके सर पर मुझे एक सफ़ेद बाल दिखाई दे रहा है, आइये उसे निकाल दूँ।" बड़ी रानी ने कहा, मगर मेरे तो सिर्फ़ एक ही बाल हैं, क्या वो भी सफ़ेद हो गया?" छोटी रानी ने झूठ मूठ का गुस्सा दिखाया और बोली," ठीक है अगर मुझ पर विश्वास नहीं तो मुझसे बात करने की भी ज़रूरत नहीं। मैं तो आपके भले के लिये ही कह रही थी।" भोली भाली बड़ी रानी छोटी रानी की बातों में आ गई, और छोटी रानी ने उसका वो एक बाल चिमटी से खींच कर निकाल दिया। बड़ी रानी के अब कोई बाल बाकी नहीं रहे। राजा ने जब ये देखा तो बहुत नाराज़ हुये और बिना कुछ कहे सुने बड़ी रानी को घर से निकाल दिया। </span><br /><span style="font-size:130%;"></span><br /><span style="font-size:130%;">बड़ी रानी रोते रोते राज्य से बाहर चली गई। एक नदी के किनारे, अनार के पेड़ के नीचे बैठ कर वो ज़ोर ज़ोर से रो रही थी कि तभी एक बित्ते भर की बहुत सुंदर परी प्रकट हुई। उस परी ने रानी से उसके रोने का कारण पूछा। बड़ी रानी ने सब कुछ सच सच बता दिया। तब परी बोली, " ठीक है, मैं जैसा कहती हूँ, वैसा ही करो, न ज़्यादा न कम। पहले इस नदी में तीन डुबकी लगाओ और फिर इस अनार के पेड़ से एक अनार तोड़ो।" और ऐसा कह कर परी गायब हो गयी।</span><br /><span style="font-size:130%;"></span><br /><span style="font-size:130%;">बड़ी रानी ने वैसा ही किया जैसा कि परी ने कहा था। जब रानी ने पहली डुबकी लगाई तो उसके शरीर का रंग और साफ़ हो गया, सौंदर्य और निखर गया। दूसरी डुबकी लगाने पर उसके शरीर में सुंदर कपड़े और ज़ेवर आ गये। तीसरी डुबकी लगाने पर रानी के सुंदर लंबे काले घने बाल आ गये। इस तरह रानी बहुत सुंदर लगने लगी। नदी से बाहर निकल कर रानी ने परी के कहे अनुसार अनार के पेड़ से एक अनार तोड़ा। उस अनार के सारे बीज सैनिक बन कर फूट आये और रानी के लिये एक तैयार पालकी में उसे बिठा कर राज्य में वापस ले गये। </span><br /><span style="font-size:130%;"></span><br /><span style="font-size:130%;">राजमहल के बाहर शोर सुन कर राजा ने अपने मंत्री से पता करने कहा कि क्या बात है। मंत्री ने आकर ख़बर दी कि बड़ी रानी का जुलूस निकला है। राजा ने तब बड़ी रानी को महल में बुला कर सारी कहानी सुनी और पछताते हुये इस बार छोटी रानी को राज्य से बाहर निकल जाने का आदेश दिया। </span><br /><span style="font-size:130%;"></span><br /><span style="font-size:130%;">छोटी रानी ने पहले ही परी की सारी कहानी सुन ली थी। वो भी राज्य से बाहर जा कर अनार के पेड़ के नीचे, नदी किनारे जा कर रोने लगी। पिछली बार जैसे ही इस बार भी परी प्रकट हुई। परी ने छोटी रानी से भी उसके रोने का कारण पूछा। छोटी रानी ने झूठ मूठ बड़ी रानी के ऊपर दोष लगाया और कहा कि उसे बड़ी रानी महल से बाहर निकाल दिया है। तब परी बोली, " ठीक है, मैं जैसा कहती हूँ, वैसा ही करो, न ज़्यादा न कम। पहले इस नदी में तीन डुबकी लगाओ और फिर इस अनार के पेड़ से एक अनार तोड़ो।" और ऐसा कह कर परी गायब हो गयी।</span><br /><span style="font-size:130%;"></span><br /><span style="font-size:130%;">छोटी रानी ने ख़ुश हो कर नदी में डुबकी लगाई। जब रानी ने पहली डुबकी लगाई तो उसके शरीर का रंग और साफ़ हो गया, सौंदर्य और निखर आया। दूसरी डुबकी लगाने पर उसके शरीर पर सुंदर कपड़े और ज़ेवर आ गये। तीसरी डुबकी लगाने पर रानी के सुंदर लंबे काले घने बाल आ गये। इस तरह रानी बहुत सुंदर लगने लगी। जब छोटी रानी ने ये देखा तो उसे लगा कि अगर वो तीन डुबकी लगाने पर इतनी सुंदर बन सकती है, तो और डुबकिय़ाँ लगाने पर जाने कितनी सुंदर लगेगी। इसलिये, उसने एक के बाद एक कई डुबकियाँ लगा लीं। मगर उसका ऐसा करना था कि रानी के शरीर के सारे कपड़े फटे पुराने हो गये, ज़ेवर गायब हो गये, सर से बाल चले गये और सारे शरीर पर दाग़ और मस्से दिखने लगी। छोटी रानी ऐसा देख कर दहाड़े मार मार कर रोने लगी। फिर वो नदी से बाहर आई और अनार के पेड़ से एक अनार तोड़ा। उस अनार में से एक बड़ा सा साँप निकला और रानी को खा गया।</span><br /><span style="font-size:130%;"></span><br /><span style="font-size:130%;">इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि दूसरों का कभी बुरा नहीं चाहना चाहिये, और लोभ नहीं करना चाहिये।</span>Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी http://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-5367913506701613848.post-33329700975967593662008-09-17T17:13:00.001-07:002009-03-03T15:09:20.401-08:00परी कथायें व अन्य बाल कथायें<span style="font-size:130%;color:#330033;">बचपन में हर रात सोने जाने से पहले पापा मुझे एक कहानी सुनाते थे। कई बार वो कहानियाँ दोहराई जाती थीं, मगर एक कहानी रोज़ होती थी। उसी तरह बंगला परी कथाओं की एक कहानी की किताब, "ठाकुमार झूली" से भी बचपन में मैंने कई कहानियाँ पढ़ीं। उन में से अभी भी कुछ याद हैं और अपनी याददाश्त के ही आधार पर वो कहानियाँ मैं यहाँ पेश करूँगी, जब जैसा समय मिले। </span><br /><span style="font-size:130%;color:#330033;"></span><br /><span style="font-size:130%;color:#330033;">disclaimer: सभी कहानियों में कई जगह असली कहानी से पात्रों और जगह के नाम भिन्न हो सकते हैं व कहानी में भी पार्थक्य हो सकता है। </span><br /><span style="font-size:130%;"><span style="color:#330033;">अगले पोस्ट में कहानी- <strong>एक राजा और उसकी दो रानियाँ।</strong></span></span>Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी http://www.blogger.com/profile/13192804315253355418noreply@blogger.com0