Wednesday, February 18, 2009

सुखू और दुखू- पहला भाग


बंगाल के छोटे से गाँव में दो बहनें रहती थीं- सुखू और दुखू। सुखू और दुखू सौतेली बहनें थीं। उनके पिता सुखू और उसकी मां को ज़्यादा प्यार करते थे। सुखू और उसकी मां, दुखू और उसकी मां के साथ बुरा व्यवहार करतीं। थोड़े समय के बाद, सुखू और दुखू के पिता बीमार हो कर स्वर्ग सिधार गये और सुखू और उसकी मां को सारी संपत्ति का अधिकारी बना गये। तब दुखू और उसकी मां को सुखू की मां ने घर से निकाल दिया। ऐसे में दुखू अपनी मां के साथ पास ही एक कुटिया बना कर रहने लगीं। उनके दिन बड़े ही दुख और ग़रीबी में बीत रहे थे।


एक दिन की बात है, दुखू बैठ कर चरखा कात रही थी कि हवा आकर उसकी रूई उड़ा ले गई। दुखू पहले तो हवा के पीछे भागी मगर उसे न पकड़ पाई और रोने लगी। तभी हवा ने उससे कहा, " रो नहीं दुखू, तुम मेरे साथ आओ मैं तुम्हें रूई दूँगी।" दुखू ये सुन कर हवा के पीछे पीछे चलने लगी।


रास्ते में जाते जाते उसकी मुलाक़ात एक गाय से हुई। गाय ने दुखू से कहा," दुखू ज़रा रुको, मेरी आसपास की जगह देखो, गोबर से भरी पड़ी है, इसे ज़रा साफ़ कर के जाओ।" दुखू ने रुक कर गाय के चारों तरफ़ की ज़मीन को साफ़ किया और फिर हवा के पीछे चल पड़ी।


और आगे जाकर दुखू को एक केले का पेड़ मिला। पेड़ पर जाले लगे हुये थे और वो हवा के साथ खेल नहीं पा रहा था। तब केले के पेड़ ने कहा, " दुखू, ज़रा देर रुको और मेरे जाले को साफ़ कर दो"। दुखू ने रुक कर पेड़ के पत्तों से जाले हटाये और अब पेड़ हवा के साथ खेलने लगा। दुखू फिर हवा के पीछे चल पड़ी।


थोड़ी दूर और जाने पर उसे एक घोड़ा मिला। घोड़े ने दुखू को रोक कर कहा," दुखू, क्या तुम मेरे लिये थोड़ी घास ला दोगी? मैं बँधा हूँ इसलिये दूर जा कर घास नहीं खा सकता।" दुखू उसके लिये घास ले आई और घोड़े ने घास खाई। दुखू फिर हवा के पीछे चल दी।


हवा के पीछे चलते चलते वो बादल के गाँव आ पहुँची। हवा ने उसे बादलों के बीच एक महल दिखाया और कहा," वहाँ चाँद की मां रहती है। उसके पास बहुत रूई है, तुम उससे जा अक्र रूई ले लो। दुखू धीरे धीरे उस महल के अंदर गई। वहाँ एक बुढि़या बैठी चरखा कात रही थी। उसने बड़े प्यार से दुखू से कहा," बेटा तुम थकी हो, कुछ खा लो। मेरे बायें पास के कमरे में खाना रखा है।"


दुखू ने बायें पास के कमरे में जा कर देखा तो वहाँ नाना तरह के व्यंजन रखे थे- पूरियाँ, आलूदम, रसगुल्ले, मिठाई, चमचम और भी जाने क्या क्या। उसने पेट भर कर खाना खाया और फिर बुढिया मां के पास आई और कहा," दादी मां, हवा मेरी रूई उड़ा लाई है। आपके पास बहुत रूई है, क्या मुझे थोड़ा सा दे सकती हैं?"


बूढ़ी मां ने दुखू से कहा," बेटा मैं तुम्हें और बहुत कुछ दूँगी। तुम मेरे दाहिने पास के कमरे में जा कर देखो। वहाँ तुम्हें कई पिटारे मिलेंगे। कोई भी ले लो"।


दुखू ने दाहिने पास के कमरे में जा कर देखा तो वहाँ कई पिटारे रखे थे, छोटे बड़े, बहुत बडे। दुखू ने एक छोटा सा पिटारा उठाया और दादी मां को प्रणाम कर वापस घर के लिये निकल पड़ी।
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