Wednesday, October 21, 2009

बिग आल- हूबहू नहीं पर कहानी वही





आज ऐन्ड्रू क्लेमेंट्स योशी की कहानी "बिग आल" का हिन्दी रूपांतरण- हूबहू नहीं पर कहानी वही।

पूरे नीले समंदर में बिग आल जैसी अच्छी मछली नहीं थी। मगर वो दिखने में बेहद भयानक थी। इतनी भयानक कि उस पूरे समंदर में उसका कोई दोस्त नहीं था । सारी छोटी-बड़ी मछलियाँ उससे दूर भागती थीं। बिग आल उन से दोस्ती करना चाहती थी, मगर उसका भयंकर रूप देख कर उसके पास कोई भी नहीं आता। बिग आल ने काफ़ी कोशिश की छोटी मछलियों से बात करने की, उनसे दोस्ती करने की। मगर हर बार बात बिगड़ जाती।

एक बार बिग आल ने अपने को समुद्र की पत्तियों से ढाँप लिया। मगर उस बड़े से तैरते बेल-पती को देख कर छोटी मछलियाँ और भागीं। फिर एक बार बिग आल ने अपने को खूब फुला लिया कि शायद सब उसे देख कर हँसे और उससे दोस्ती कर लें, मगर, न, सभी मछलियाँ उससे डर कर और दूर भाग गईं। फिर एक बार बिग आल ने खु़द को समुद्र के नीचे रेत में दबा लिया और सभी मछलियों से हँसी-ठिठोली करने लगी। सभी मछलियाँ उसकी दोस्त बन गईं, मगर थोड़ी ही देर के लिये। एक रेत का कण बिग आल की नाक (गिल्स) में जा घुसा और वो
आं...आं...आंच्छी....कर के छींक पड़ी। बस उसका छींकना था कि बिग आल को ढकती सारी रेत पानी में इधर-उधर हो गई और बिग आल का असली रूप देख कर सभी मछलियाँ भाग गईं। एक बार बिग आल ने सभी मछलियों के साथ समुद्र में एक सा बन कर, रंग बदल कर तैरने की कोशिश की. मगर वो इतनी बड़ी थी कि उन छोटी मछलियों की गति के साथ तैर नहीं पाती और सब से टकरा जाती।

अब कि बार जब बिग आल को पक्का हो ही चला था कि उसकी कोई दोस्त नहीं बन सकता कभी भी, और वो उस दिन बेहद उदास थी, तभी अचानक समुद्र में ऊपर से एक भारी सा कुछ आकर गिरा। वो एक जाल था जिसमें सारी छोटी मछलियाँ फँस गईं। बिग आल का ये देखना था कि उसने आव देखा न ताव, वो तेज़ गति से उस जाल से जा टकराई। जाल टूट गया और सभी छोटी मछलियाँ आज़ाद हो गईं। मगर...बिग आल इस जाल में फँस गई। और वो जाल ऊपर उठ गया समुद्र से।

"ओह! वो भली मछली कौन थी, हमें उसने बचाया, हाय वो तो फँस गई..." सभी मछलियाँ आपस में बात करने लगीं कि
छप्पाक...ऊपर से फिर कुछ गिरा...ओह! फिर मछली का जाल तो नहीं? सभी मछलियाँ फिर एक बार डर गईं। नहीं, इस बार जाल नहीं बल्कि वो बिग आल थी। इतनी बदसूरत भयानक मछली को मछुआरों ने देख कर वापस समुद्र में फेंक दिया था।

उस दिन के बाद से सारे समुद्र में सबसे ज़्यादा दोस्त थे बस एक ही मछली के - बिग आल के।

(आशा है कि ऐसे किसी रूपांतरण से किसी कापीराइट का हनन नहीं होता होगा, और अगर ऐसा है तो ये अनजाने में हुआ होगा, और ब्लाग पर सूचित करने पर इस पोस्ट को हटा दिया जायेगा)

Sunday, April 12, 2009

बारह राजकुमारियाँ- अंतिम भाग




गतांक से आगे-

उस सैनिक को राजा ने कई बार चेतावनी दी और अपने कार्य में सफ़ल न होने पर अंजाम से अवगत कराया मगर सैनिक अपने निश्चय पर दृढ़ रहा। तब राजा ने उसे राजकुमारियों के कमरे से लगे एक कमरे में तीन दिन बिताने की व्यवस्था कर दी। इस कमरे का दरवाज़ा राजकुमारियों के कमरे के साथ खुला हुआ था।


शाम को खाना खाने के बाद, राजकुमारियों ने उस सैनिक को अंगूर से बनी शराब पीने के लिये दी। सैनिक ने वो शराब ले तो ली मगर बुढि़या की बात याद करके उसे आँख बचा कर फेंक दिया। थोड़ी देर बाद सैनिक अपने कमरे में जा कर सोने का नाटक करने लगा और ज़ोर ज़ोर से खर्राटे भरने लगा। उसे सोता देख सभी राजकुमारियाँ खुश हो गईं। वो धीरे से उठीं और उन्होंने अपनी पोषाक बदल कर सुंदर पोषाक पहनी। फिर उन्होंने जूतियाँ पहनी और सभी राजकुमारियाँ फ़र्श के एक गुप्त दरवाज़े से निकल कर जाने लगीं।


सैनिक ये सब एक आँख भींचे देख रहा था। जैसे ही राजकुमारियाँ जाने लगीं, वो भी उठा और उसने बुढ़िया की दी हुई कोट पहन ली और राजकुमारियों के पीछे चल पड़ा। सबसे छोटी राजकुमारी सबसे पीछे चल रही थी। गुप्त दरवाज़े से सुरंग की ओर बढ़ते हुए, सीढियों पर, सैनिक का पैर छोटी राजकुमारी की लंबी पोषाक पर पड़ गया। छोटी राजकुमारी घबरा गई और कह उठी कि उसकी पोषाक को किसी ने पीछे से खींचा है। सभी राजकुमारियों ने उसे तसल्ली दी कि वह कुछ और नहीं बल्कि उसका वहम है।


सुरंग में और नीचे जाते-जाते, सभी राजकुमारियाँ एक चाँदी के बगीचे में पहुँचीं। वहाँ फूल, पत्ते, पेड़ आदि सभी चाँदी के बने हुए थे। ये देख कर सैनिक हैरान रह गया। बारहों राजकुमारियाँ वहाँ मिल कर खूब नाचीं। सैनिक ने राजा को सबूत देने के लिये उस बगीचे से एक चाँदी की डाल तोड़ी और अपने जेब में रख ली। डाल के टूटने से एक ज़ोर की आवाज़ आई जिसे सुन कर छोटी राजकुमारी घबरा गई। मगर फिर सभी ने मिल कर उसे समझाया कि वो उसका वहम मात्र है।


सुरंग में और नीचे जाने पर अब एक सोने का बगीचा आया और वहाँ भी राजकुमारियाँ मिल कर खूब नाचीं। उस सैनिक ने वहाँ के सबूत के तौर पर एक सोने की डाल तोड़ ली और अपने जेब में रख ली। आगे और जाने पर इसी तरह एक हीरे का बगीचा आया जहाँ फिर से राजकुमारियाँ मिल कर नाचीं और सैनिक ने वहाँ से भी एक डाल तोड़ कर रख ली। हर बार डालों के टूटने की आवाज़ से छोटी राजकुमारी के डर जाने पर उसे अन्य राजकुमारियों ने वहम का पाठ पढ़ा दिया।


आगे जाने पर आख़िर में एक बड़ी सी झील आई जहाँ बारह सुंदर नौकायें प्रतीक्षा कर रही थीं। हर नौका में एक राजकुमार था और राजकुमारियाँ एक-एक नौका में चली गईं। सैनिक भी छोटी राजकुमारी के नौके में चढ़ गया। नौके को खे रहे राजकुमार ने संदेह प्रकट किया कि आज उसे नौका सामान्य दिनों की अपेक्षा भारी लग रही है, मगर आसपास तो कोई भी नहीं था। तब राजकुमारी ने कहा कि ये सिर्फ़ मौसम की गर्मी का असर है जो हवा की गर्मी और उमस से नौका भी भारी हो गई है।


थोड़ी देर बाद नौकायें एक किनारे पर पहुँचीं। किनारे पर एक सुंदर महल था। महल के अंदर से बाजों की आवाज़ आ रही थी। सभी राजकुमारियाँ नौकाओं से उतर कर महल के अंदर पहुँचीं और वहाँ पहुँच कर वे राजकुमारों के साथ खूब नाचीं। सारी रात इस तरह नाचने से उनकी जूतियाँ तार-तार हो गईं। अंगूर की शराब पीने और लाजवाब खाना खाने के बाद राजकुमारियाँ नौकाओं में बैठ कर अपने घर लौटने लगीं। सैनिक ने सबूत के रूप में वहाँ से एक शराब का गिलास उठा लिया और अपनी जेब में रख लिया।


इस बार सैनिक बड़ी राजकुमारी की नौका में बैठा और सबसे पहले दौड़ कर अपने कमरे में पहुँच कर सोने का फिर से नाटक करने लगा। राजकुमारियों ने जब उसे अपने कमरे में सोता पाया तो खूब हँसीं और निश्चिंत हो कर सोने चली गईं।


इसी तरह सैनिक ने तीनों रातों को राजकुमारियों का पीछा किया और सबूत जमा किये। चौथे दिन, सैनिक ने राजा को पूरी कहानी सुनाई और सबूत पेश किये। अब राजकुमारियाँ कोई बहाना नहीं बना पाईं और तब सैनिक ने पुरस्कार स्वरूप बड़ी राजकुमारी से शादी कर ली और बाद में एक अच्छा राजा बन कर बहुत दिनों तक राज किया।


समाप्त

Saturday, April 11, 2009

बारह राजकुमारियाँ- भाग १


बहुत समय पहले की बात है। किसी राज्य में एक राजा शासन करता था। उसकी बारह बेटियाँ थीं। सभी बेहद सुंदर थीं। मगर राजा के लिये एक बड़ी समस्या थी। बारहों राजकुमारियों को रोज़ नयी जूतियाँ चाहिये होती थीं क्योंकि रोज़ ही उनकी जूतियाँ पूरी तरह से फटी होती थीं, कुछ इस तरह से कि लगता था कि कोई सारे दिन या रात भर जूतियाँ पहन कर नाचा हो। राजा के लाख पूछने पर भी राजकुमारियाँ इस का कारण नहीं बताती थीं कि उन्हें रोज़ जूते बदलने की क्या आवश्यकता होती है और उनकी जूतियाँ रोज़ फट कैसे जाती हैं।


एक दिन राजा ने तंग आ कर सारे देश में ऐलान कर दिया कि जो कोई भी इस राज़ से पर्दा उठा सकेगा, उस व्यक्ति को पुरस्कार स्वरूप न सिर्फ़ उसके पसंदीदा राजकुमारी से शादी करने का मौक़ा दिया जायेगा बल्कि उस देश का उत्तराधिकारी भी बना दिया जायेगा। इस काम के लिये उस व्यक्ति विशेष को तीन दिन का समय दिया जायेगा और अगर वो इस राज़ से पर्दा उठाने में असमर्थ रहा तो उसका सर धड़ से अलग कर दिया जायेगा।

कई अन्य राज्यों से अनेक राजकुमार अपना अपना भाग्य आज़माने आये। मगर तीन दिन तक उन राजकुमारियों के साथ साथ रहने पर भी वो इस बात का पता नहीं कर सके कि उन राजकुमारियों को अपनी जूतियाँ बदलने की ज़रूरत क्यों होती है। इस तरह अनेक राज्कुमारों और अनेक लोगों ने अपनी जान गँवाई, मगर राजकुमारियों उस राज़ पर पर्दा पड़ा रहा।

उसी समय की बात है जब एक अधेड़ उम्र का सैनिक, जो कि किसी जंग में काफ़ी ज़ख़्मी हो चुका था, उसी राज्य से गुज़र रहा था। उसे जब राजा के इस अजीबोग़रीब घोषणा और पुरस्कार का पता चला तो वो भी अपना भाग्य आज़माने को मचल पड़ा। उसी राज्य में उसकी मुलाक़ात एक बुढ़िया से हुई जिसकी उसने मदद की। बुढिया ने उससे ख़ुश हो कर कहा कि अगर तुम सचमुच उन राज्कुमारियों के राज़ का पर्दाफ़ाश करना चाहते हो तो दो बातों का ध्यान रखना। पहला ये कि कभी भी उन राजकुमारियों द्वारा दिया हुआ कोई भी पेयपदार्थ मत पीना और ये कोट रख लो। इस कोट को तुम जब भी पहनोगे तो तुम ग़ायब हो जाओगे। तुम्हें तो कोई देख नहीं पायेगा मगर तुम सभी को देख सकोगे।
तब वह सैनिक उस बुढ़िया को धन्यवाद कह और वह कोट ले कर राजा के महल में अपना भाग्य आज़माने पहुँच गया।

क्रमश:
ऊपर दिया चित्र सौजन्य:




Tuesday, March 3, 2009

सुखू और दुखू (आख़िरी भाग)



घर वापस आते समय, दुखू को रास्ते में घोड़ा मिला। घोड़े ने दुखू को देख कर खुश होते हुये उसका हाल पूछा उअर उसे उपहार में एक छोटा बच्चा घोड़ा दिया। दुखू खुशी से फूली न समाई। अब वो उस घोड़े पर बैठ कर अपने घर की ओर जाने लगी। आगे और चल कर उसे रास्ते में केले का पेड़ मिला। उस केले के पेड़ ने भी दुखू का हाल-चाल पूछा और उसे एक केले का बड़ा सा गुच्छा तोहफ़े में दिया। दुखू उसे भी साथ ले कर खुशी खुशी अपने घर की ओर चल पड़ी। आगे और जा कर उसे गाय मिली, जिसने उसे उपहार में एक बछड़ा दिया। दुखू ये सब ले कर अपने घर पहुँची। दुखू को देख कर उसकी मां बहुत खुश हुई। रात को जब दुखू ने अपना छोटा सा पिटारा खोला तो उसमें से एक राज कुमार निकला और उसने दुखू की मां से दुखू का हाथ माँगा। दुखू की माँ बहुत ख़ुश हुई और दुखू अब शादी के बाद बड़े से महल में रहने लगी।


दुखू और उसकी मां की तरक्की देख कर सुखू और उसकी मां जलभुन कर राख हो गये। एक दिन सुखू ने दुखू से मिल कर पूछ लिया कि आखिर ये सब हुआ कैसे। दुखू ने सुखू को सब सच सच बता दिया। तब एक दिन सुखू भी रूई ले कर बैठी और झूठ मूठ चरखा कातने लगी। तब हवा आकर उसकी भी रूई उड़ा कर ले गई। सुखू ने भी खूब हाय तौबा मचाई। तब हवा ने आकर सुखू को भी उसके साथ आने को कहा। सुखू हवा के पीछे हो ली।


आगे चल कर सुखू को वही गाय मिली। गाय फिर गंदगी में पड़ी थी। उसने सुखू से कहा कि वो उसके आसपास को ज़रा साफ़ कर दे। मगर सुखू ने तेज़ आवाज़ में कहा," मैं क्यों करूँ? मुझे अभी बहुत काम है, मैं हवा के साथ जा रही हूँ, चांद की मां से मिलने।" ऐसा कह कर सुखू हवा के साथ आगे निकल गई। इसी तरह उसे आगे रास्ते मॆं केले का पेड़ और घोड़ा भी मिले। मगर सुखू ने उनकी भी कोई मदद नहीं की।


हवा के साथ आगे चल कर उसे भी चांद की मां का महल दिखा। वो चिल्लाते हुये अंदर घुसी और कहा, " ए बुढ़िया, मुझे जल्दी से रूई दे दे, जो कि हवा उड़ा लाया है।" चांद की मां को बुरा लगा मगर उसने सुखू से कहा कि वो बांये के कमरे में जा कर कुछ खा ले और बाद में दाहिने कमरे में जा कर अपनी पसंद का एक पिटारा ले ले। सुखू ने ज़रूरत से ज़्यादा पेट भर कर खाया और अब दूसरे कमरे मॆं जा कर पिटारा लेने गई। उसे वहाँ कई छोटे बड़े पिटारे दिखे। उसने चुन कर एक सबसे भारी और बड़ा पिटारा लिया और उसे सर पर लाद कर, बूढ़ी चाँद की मां को कोई धन्यवाद किये बिना ही वहाँ से निकल गई।


घर वापस जाते वक्त रास्ते में सुखू को घोड़ा मिला। घोड़े ने उसे ज़ोर से दुलत्ती मारी और सुखू वहाँ से रोते रोते भागी। आगे और जाने पर उसे केले का पेड मिला। केले के पेड़ ने भी उसे सबक सिखाने के लिये अपने डाल से उस पर वार किया। बड़े से भारी बक्से के साथ सुखू किसी तरह हाँफ़ते हांफ़ते घर की भागी। आगे और जाने पर उसे रास्ते में गाय मिली। गाय ने भी उसे सींग से मारा। सुखू रोते रोते, गिरते पड़ते अपने घर पहुँची। सुखू की मां उसका बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी। उसकी ये हालत देख कर वो परेशान हो गई और कहा, चलो अब ये बक्सा खोलो। बक्से के खोलते ही, उसमें से एक बड़ा सा साँप निकला और सुखू को निगल गया। सुखू की माँ वो गाँव छोड़ कर चली गई।


इसलिये हमें चाहिये कि हम सब का भला सोचें और सबका भला करें। अच्छे का फल अच्छा होता है और बुरे का बुरा।


Wednesday, February 18, 2009

सुखू और दुखू- पहला भाग


बंगाल के छोटे से गाँव में दो बहनें रहती थीं- सुखू और दुखू। सुखू और दुखू सौतेली बहनें थीं। उनके पिता सुखू और उसकी मां को ज़्यादा प्यार करते थे। सुखू और उसकी मां, दुखू और उसकी मां के साथ बुरा व्यवहार करतीं। थोड़े समय के बाद, सुखू और दुखू के पिता बीमार हो कर स्वर्ग सिधार गये और सुखू और उसकी मां को सारी संपत्ति का अधिकारी बना गये। तब दुखू और उसकी मां को सुखू की मां ने घर से निकाल दिया। ऐसे में दुखू अपनी मां के साथ पास ही एक कुटिया बना कर रहने लगीं। उनके दिन बड़े ही दुख और ग़रीबी में बीत रहे थे।


एक दिन की बात है, दुखू बैठ कर चरखा कात रही थी कि हवा आकर उसकी रूई उड़ा ले गई। दुखू पहले तो हवा के पीछे भागी मगर उसे न पकड़ पाई और रोने लगी। तभी हवा ने उससे कहा, " रो नहीं दुखू, तुम मेरे साथ आओ मैं तुम्हें रूई दूँगी।" दुखू ये सुन कर हवा के पीछे पीछे चलने लगी।


रास्ते में जाते जाते उसकी मुलाक़ात एक गाय से हुई। गाय ने दुखू से कहा," दुखू ज़रा रुको, मेरी आसपास की जगह देखो, गोबर से भरी पड़ी है, इसे ज़रा साफ़ कर के जाओ।" दुखू ने रुक कर गाय के चारों तरफ़ की ज़मीन को साफ़ किया और फिर हवा के पीछे चल पड़ी।


और आगे जाकर दुखू को एक केले का पेड़ मिला। पेड़ पर जाले लगे हुये थे और वो हवा के साथ खेल नहीं पा रहा था। तब केले के पेड़ ने कहा, " दुखू, ज़रा देर रुको और मेरे जाले को साफ़ कर दो"। दुखू ने रुक कर पेड़ के पत्तों से जाले हटाये और अब पेड़ हवा के साथ खेलने लगा। दुखू फिर हवा के पीछे चल पड़ी।


थोड़ी दूर और जाने पर उसे एक घोड़ा मिला। घोड़े ने दुखू को रोक कर कहा," दुखू, क्या तुम मेरे लिये थोड़ी घास ला दोगी? मैं बँधा हूँ इसलिये दूर जा कर घास नहीं खा सकता।" दुखू उसके लिये घास ले आई और घोड़े ने घास खाई। दुखू फिर हवा के पीछे चल दी।


हवा के पीछे चलते चलते वो बादल के गाँव आ पहुँची। हवा ने उसे बादलों के बीच एक महल दिखाया और कहा," वहाँ चाँद की मां रहती है। उसके पास बहुत रूई है, तुम उससे जा अक्र रूई ले लो। दुखू धीरे धीरे उस महल के अंदर गई। वहाँ एक बुढि़या बैठी चरखा कात रही थी। उसने बड़े प्यार से दुखू से कहा," बेटा तुम थकी हो, कुछ खा लो। मेरे बायें पास के कमरे में खाना रखा है।"


दुखू ने बायें पास के कमरे में जा कर देखा तो वहाँ नाना तरह के व्यंजन रखे थे- पूरियाँ, आलूदम, रसगुल्ले, मिठाई, चमचम और भी जाने क्या क्या। उसने पेट भर कर खाना खाया और फिर बुढिया मां के पास आई और कहा," दादी मां, हवा मेरी रूई उड़ा लाई है। आपके पास बहुत रूई है, क्या मुझे थोड़ा सा दे सकती हैं?"


बूढ़ी मां ने दुखू से कहा," बेटा मैं तुम्हें और बहुत कुछ दूँगी। तुम मेरे दाहिने पास के कमरे में जा कर देखो। वहाँ तुम्हें कई पिटारे मिलेंगे। कोई भी ले लो"।


दुखू ने दाहिने पास के कमरे में जा कर देखा तो वहाँ कई पिटारे रखे थे, छोटे बड़े, बहुत बडे। दुखू ने एक छोटा सा पिटारा उठाया और दादी मां को प्रणाम कर वापस घर के लिये निकल पड़ी।
क्रमश:(आगे की कहानी के लिये क्लिक करें)